व्याख्या : ‘राम की शक्ति पूजा ‘

लौटे युग – दल – राक्षस – पदतल पृथ्वी टलमल,
बिंध महोल्लास से बार – बार आकाश विकल।
वानर वाहिनी खिन्न, लख निज – पति – चरणचिह्न
चल रही शिविर की ओर स्थविरदल ज्यों विभिन्न।

प्रशमित हैं वातावरण, नमित – मुख सान्ध्य कमल
लक्ष्मण चिन्तापल पीछे वानर वीर – सकल
रघुनायक आगे अवनी पर नवनीत-चरण,
श्लथ धनु-गुण है, कटिबन्ध स्रस्त तूणीर-धरण,

व्याख्या: ‘राम की शक्ति पूजा ‘ में निराला ने रावण जय -भय की आशंका को दूर  करते हुए शक्ति की मौलिक कल्पना द्वारा शक्ति को अर्जित किया है।

आज के राम -रावण समर में नर-वानर सेना को व्यापक क्षति पहुंची है और दोनों पक्षों की सेना वापस शिविर की ओर लौट रही है . एक ओर जहां राक्षसों की सेना में आज के रण को लेकर हर्ष व्याप्त है वहीँ दूसरी ओर राम की सेना व्यथित और निराश है और राक्षस सेना के हर्षोल्लास का कारण है शक्ति का उनकी तरफ होना। निराला प्रकृतिवादी अद्वैत चिंतन के आधार पर पंचतत्वों को शक्ति का रूप मानते हैं जिसमें आकाश और जल रावण के पक्ष में है जबकि पृथ्वी तनया सीता कारण यह स्थिर है -‘भूधर ज्यों ध्यान मग्न ‘ अर्थात रावण के पक्ष में नहीं है। इसलिए राक्षसों के पदबल सेपृथ्वी भी आतंकित और प्रकम्पित हो रही है। राम के पक्ष की शक्तियां ‘केवल जलती मशाल ‘ और निष्क्रिय पवन है।

फिर निराला फोटो टेक्निक का प्रयोग करते हुए राम की नर -वानर सेना के प्रोटोकॉल का चित्र खींचते हैं।सेना अपने नायक राम के माखन जैसे चरण का अनुसरण करते हुए चल रहे हैं, पीछे लक्ष्मण हैं ,आज  के समर को लेकर चिंतामग्न हैं। राम के ‘नवनीत चरण ‘ पृथ्वी तनया सीता के कारण  है।वातावरण में स्तब्धता और निराशा छाई हुई है और यह स्तब्धता और निराशा राम के अंतर्मन को भी व्यक्त कर रहे हैं। इसका प्रभाव संपूर्ण सेना में विकल भाव पैदा कर रहा है। राम की धनुष की प्रत्यंचा ढीली हो गयी है और कतिवास्त्र अस्त -व्यस्त हैं।

निराला ने RKSPमें राम कोअंतर्द्वंदों से संपृक्त कर उसे अलौकिकता से उठाकर लौकिक धरातल पर स्थापित किया है। इस प्रकार राम आधुनिक भावबोध से जुड़ते दिखाई पड़ते हैं।

—तत्सम प्रधान भाषा और नाद सौंदर्य

—सामासिकभाषा एवं अनुप्रास

 

Leave a comment